पणजी: के साथ मराठी फिल्म 'बकेट लिस्ट' और संजय दत्त-मान्यता दत्त के साथ मिलकर मराठी फिल्म 'बाबा' बनाने वाले निर्माता अशोक सुभेदार इन दिनों गोवा के पणजी में आयोजित भारत के 50 वें अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के फिल्म बाजार खंड में अपनी फिल्म 'बाबा' को लेकर आए हैं। अपनी फिल्म के प्रचार में जुटे अशोक ने नवभारतटाइम्स डॉट कॉम से हुई बातचीत में बताया कि मराठी भाषा की फिल्मों का बाजार तड़प रहा है। अशोक कहते हैं कि मराठी फिल्म इंडस्ट्री की हालत कुछ इस तरह की है कि और माधुरी दीक्षित का स्टारडम भी काम नहीं कर रहा। वैसे माधुरी और संजय दत्त की जोड़ी का स्टारडम करण जौहर की मल्टीस्टारर फिल्म 'कलंक' में भी नहीं चला था। अशोक कहते हैं, 'मैं मराठी हूं, इसलिए मैंने अपनी पहली फिल्म मराठी में बनाने का फैसला किया। फिल्म की अच्छी पब्लिसिटी हो इसलिए हमने माधुरी दीक्षित को कास्ट किया और फिल्म बकेट लिस्ट बनाई। मैंने अपनी दूसरी मराठी फिल्म बाबा बनाई, जिसमें संजय दत्त और मान्यता दत्त को साथी निर्माता बनाया, लेकिन मैंने अपनी दोनों फिल्मों की रिलीज़ के बाद यह समझा कि चाहे आप अपनी फिल्म में माधुरी दीक्षित जैसी स्टार को ले लो या फिर संजय दत्त को, मराठी फिल्म का बॉक्स ऑफिस कलेक्शन बहुत बुरा होता है।' हमने सोचा था कि माधुरी दीक्षित और संजय दत्त के साथ काम कर रहे हैं, शायद स्टार पावर काम कर जाए और हमारी फिल्में अच्छा प्रदर्शन करें, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। आप साउथ में देखें फिल्म उनका रिलिजन है, यहां महाराष्ट्र में मराठी फिल्मों के दर्शक नहीं हैं। इसी लिए कई मराठी फिल्मों के निर्माता अपनी फिल्म की शुरुआत मराठी में करते हैं, लेकिन बाद में वह हिंदी में रिलीज़ करते हैं।' 'कई सालों में कोई एक फिल्म होती है, जिसे फिल्म सैराट या लई भारी जैसी सफलता मिलती है। हम यह नहीं कह रहे कि हर फिल्म सैराट की तरह सफल हो, लेकिन इतनी तो चले कि मराठी में और अच्छा सिनेमा हम बार-बार बनाते रहें। फिल्म का कमर्शल वैल्यू तो आना ही चाहिए। मराठी दर्शकों की संख्या लगभग 12 करोड़ है, अगर इसमें से 10% भी फिल्म देखने जाएं तो हमारा मनोबल बढ़ेगा, लेकिन लोग मराठी फिल्में देखते ही नहीं।' 'मराठी में बहुत अच्छी-अच्छी कहानियां हैं, हम फिल्मों की शूटिंग भी क्वालिटी को ध्यान में रखकर करते हैं। माधुरी-संजय दत्त की फेस वैल्यू से लोग थिअटर तक नहीं आ रहे। मराठी का कॉन्टेंट बहुत स्ट्रांग हैं, हम इन फिल्मों को इंटरनैशनल तक ले जा सकते हैं। यह विडंबना ही है कि फिल्मों का सबसे बड़ा सम्मान महाराष्ट्र के दादा साहब फाल्के के नाम पर है, जो अभी-अभी अमिताभ बच्चन को दिया गया, लेकिन मराठी फिल्म इंडस्ट्री कहां है।' 'आप देखिए उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड या बाकी राज्यों की सरकार किस तरह फिल्म बनाने वाले लोगों को सब्सिडी देकर प्रोत्साहित कर रही है, लेकिन यहां मुंबई में सरकार का प्रोत्साहन बहुत कम है, जो सब्सिडी मिलनी भी होती है, वह मिलते-मिलते दम निकल जाता है। मराठी फिल्म इंडस्ट्री तड़प रही है, यही हाल रहा तो न जाने क्या होगा। मराठी में लगभग 5000 से ज्यादा रजिस्टर्ड निर्माता हैं, लेकिन बहुत कम लोग फिल्म बना पा रहे हैं। फिल्मों की मार्केटिंग के लिए स्टार नहीं मराठी दर्शकों के कल्चर का बदलन बहुत जरूरी है।' 'थिअटर प्ले में मराठी नाटकों का काम बहुत अच्छा चल रहा है, लोग पैसे भी खर्च करते हैं, सराहना करते हैं और समय निकालकर नाटक देखने भी जाते हैं, लेकिन जो लार्जर कैनवास पर जो फिल्म का काम है, उसमें दर्शकों की बेरुखी है। अब मैं अपनी अगली फिल्म की तैयारी कर रहा हूं, जो कि फैमिली मनोरंजन के लिए फिल्म होगी। फिल्म रॉम-कॉम है, जो विदेशों में शूट होगी। अब तक हमने फिल्म का नाम और कलाकारों को फाइनल नहीं किया है।'
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