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रील लाइफ में जितनी सार्थक भूमिकाएं करती हैं, उतनी ही बेबाक वे निजी जिंदगी में अपने विचारों को लेकर भी हैं। फिल्म '' में कबड्डी कोच बनी रिचा मानती है कि आपको बिना डरे बोलने की कीमत चुकानी पड़ती है। क्या आप इस बात से सहमत हैं कि इन दिनों बिना डरे बोलने की कीमत चुकानी पड़ रही है कलाकारों को? चाहे वो सुशांत हो, दीपिका या अनुराग?प्रजातंत्र में हर किसी को बात रखने का हक है। दीपिका का तो मुझे समझ में ही नहीं आया। उन्होंने तो एक सायलेंट प्रॉटेस्ट में भाग लिया। न उन्होंने नारे लगाए और न ही कोई बयान दिया, तो इस तरह आप कहना क्या चाहते हैं कि स्टार्स को स्टूडेंट्स के साथ हुई हिंसा का हिस्सा होना चाहिए? आप जब भी हक या सच्चाई की बात करते हैं, तो आपको खामियाजा तो भुगतना पड़ता ही है। जब मेरिल स्ट्रीप ट्रंप को चैलेंज करती हैं, तो उन्हें भी खूब ट्रोल किया जाता है। उनको कहा जाता है कि तुम अच्छी अभिनेत्री नहीं हो। उन्हें बुरी ऐक्ट्रेस करार दिया जाता है, तो फिर हमारे यहां क्या उम्मीद करें। सभी जानते हैं कि आवाज उठाने की कीमत चुकानी पड़ती है। ये सामाजिक तौर पर ज्यादा नहीं हो रहा बल्कि ऊपर से दबाव बनाया जा रहा है। समाज इसे डिस्क्रिमिनेट नहीं करता। अब जैसे अनुराग कश्यप अगर ट्रैवल करें या फिल्म फेस्टिवल में जाएं, तो मुझे नहीं लगता कि उन्हें कोई परेशान करेगा, लेकिन हां कहीं न कहीं ये धमकी जरूर होती है। आप जिस तरह से बेबाक और बेधड़क होकर मुद्दों के बारे में बात करती हैं, क्या उससे कभी आपको डर लगता है?हर कोई मुझसे ये क्यों पूछ रहा है? क्या मुझे डर जाना चाहिए? मैं एक अपर कास्ट हिंदू परिवार से हूं। संपन्न घर से हूं, मुझे कभी किसी चीज की कमी नहीं हुई। मैं पैसों में पली-बढ़ी। पूरी दुनिया घूमती हूं। मेरे पास अपनी आवाज है। मैं लोगों को इन्फ्लुएंस कर सकती हूं। अगर मैं प्रिविलेज होकर अपनी आवाज नहीं उठाऊंगी, तो कब उठाऊंगी? मुझे लगता है, जो सच्चाई से वाकिफ नहीं हैं, वे आवाज नहीं उठाते। पर बाकी सब लोग सड़कों पर हैं। यूथ सड़कों पर है। मुझे डर नहीं लगता, क्योंकि मैं सच बोल रही हूं और अगर तुम सच से डर रहे हो, तो तुम झूठे हो। और पर जो आंदोलन हो रहा है, उसका क्लाइमैक्स क्या होगा?मैं मानना चाहूंगी कि सरकार की नीयत अच्छी है। यदि सरकार को एनआरसी लागू करना है, तो उसमें जो एक लाइन है कि मुसलमान लोगों को हम अलाउ नहीं करेंगे, वह बदल दो। तमिल श्रीलंका में जो काफी समय से हिंदू हैं, जिनके कारण हमारे एक प्रधानमंत्री को अपनी जान गंवानी पड़ी, जिसे मार दिया गया, उनको भी शामिल कर लो। तब किसी को क्या प्रॉब्लम होगी। वैसे भी सारा डेटा सरकार के पास होता है। मैं यह मानना चाहूंगी कि सरकार की नीयत अच्छी है और वे कुछ अच्छा करना चाह रहे हैं। मगर इस वक्त हमारी प्राथमिकताएं कुछ और होनी चाहिए। आज जब रोजाना 30 किसान खुदकशी कर रहे हैं। मंहगाई आसमान छू रही है। 2020 में क्यों हम इस सिचुएशन में हैं। पलूशन इस कदर है कि छोटे-छोटे बच्चे सांस नहीं ले पा रहे। उन्हें फेफड़ों का कैंसर हो रहा है। इन इश्यूज पर फोकस करने के बजाय आप इतनी डिस्ट्रक्टिव नैशनल चीज क्यों लाए हैं। मुझे ये भी लगता है कि हिंदुस्तान की जनता थोड़ी डरी हुई है। डीमॉनिटाइजेशन के बाद भी लोग कितनी उम्मीद से बैंकों की लाइन में खड़े थे कि इकॉनमी सुधरेगी, काला धन कम होगा आदि, मगर ऐसा कुछ हुआ नहीं। लोगों में एक डर भी है कि ये कहीं वैसा न हो। मैं नहीं जानती कि इसका क्लाइमैक्स क्या होगा? मगर जो भी हो, मेरी प्रार्थना यही है कि हिंसक न हो। इस दौर में रील लाइफ हो या रियल लाइफ, अभिनेत्रियां मुखर होकर मोर्चा संभाल रही हैं?भाई, ये 2020 है, अब नहीं होगा, तो कब होगा? मेरा मानना है कि औरतें दुनिया बचा सकती हैं। उन्हें भगवान ने जो बच्चे पैदा करने की ताकत दी है, उससे उनमें सब्र आता है। वे पीरियड्स और लेबर का दर्द सहती हैं। जब एक औरत की मैटरनल इंस्टिक्ट समाज की ओर जागती है, तो आप उसे तोड़ नहीं सकते। वो सबसे शक्तिशाली चीज होती है। चाहे वो शाहीन बाग की औरतें हों, जो ठंड में अपने छोटे-छोटे बच्चों को लेकर बैठी हैं या वो लड़कियां हों कॉलेज की, जो बुर्का-बिंदी मूवमेंट चला रही हैं अथवा हम लोग हों या ग्रेटा थनबर्ग हो या जेन गुडॉल हो, जो क्लाइमेट चेंज के लिए काम कर रही हैं। औरत जब अपनी शक्ति से वाकिफ हो जाती है, तो दुनिया बदल सकती है। औरत की शक्ति को आदमी को भी समझना होगा। अगर तुम जय श्रीराम बोलते हो, तो तुम्हें जय सियाराम भी बोलना आना चाहिए। 'पंगा' आपने क्यों चुनी?'पंगा' मैंने कबड्डी के लालच में चुनी। मुझे लगा कि ऐसी फिल्म का हिस्सा बनकर मुझे अच्छा लगेगा। अश्विनी अय्यर एक बहुत अच्छी निर्देशक हैं। मुझे लगा कि उनके साथ काम करके मजा आएगा। इस फिल्म में मेन लीड का जो किरदार था, मुझे उसे करने में कोई रुचि नहीं थी, क्योंकि वह दस साल के बच्चे की मम्मी का है और मेरी ये इमेज ऑलरेडी 'गैंग्ज ऑफ वासेपुर' के जमाने से चली आ रही ही। आपने अपनी जिंदगी में सबसे बड़ा पंगा क्या लिया है?यही कि मैं ऐक्ट्रेस बन गई। दिल्ली की एक ऐसी लड़की मुंबई आकर अभिनेत्री बनना चाहती है, जिसका फिल्मों में कोई माई-बाप नहीं, कोई पहचान नहीं, वह दिल्ली से मुंबई आ जाती है, ऐक्ट्रेस बन जाती है। सबसे बड़ा पंगा तो मैंने यही लिया।


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