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आज से तकरीबन 17 साल पहले रिलीज़ हुई राम गोपाल वर्मा की 'भूत' को भारतीय सिनेमा की यादगार हॉरर फिल्मों में गिना जाता है। इसीलिए जब सालों बाद धर्मा जैसा बड़ा प्रॉडक्शन हाउस विकी कौशल जैसे समर्थ कलाकर के साथ इसी शीर्षक वाली 'भूत' लेकर आता है, तो दर्शक के रूप में आपको लगता है कि कुछ नया देखने को मिलेगा, मगर फर्स्ट टाइम डायरेक्टर भानु प्रताप सिंह अपनी डेब्यू फिल्म के जरिए ऐसा कुछ नहीं दर्शा पाए, जो हॉरर प्रेमियों ने पहले न देखा हो। शिपिंग अफसर पृथ्वी (विकी कौशल) अपनी निजी जिंदगी में अकेलेपन और अवसाद से उबरने की कोशिशों में लगा हुआ है। तभी उसे खबर मिलती है कि समंदर के किनारे एक बहुत बड़ा जहाज बिना किसी क्रू मेंबर के अपने आप आप पहुंचा है। पृथ्वी का बॉस जो कि रिटायरमेंट की कगार पर है, जल्द से जल्द इस शिप से छुटकारा पाना चाहता है। अभी वे इस शिप की जांच-पड़ताल कर रहे होते हैं कि पृथ्वी को जहाज में कुछ अजीबो-गरीब अनुभव होते हैं। उस वक्त पृथ्वी डर जाता है, जब ये डरावने अनुभव उसे घर में भी घेरने लगते हैं। पृथ्वी को पता चलता है कि सी बर्ड नाम का यह जहाज एक अरसे से हॉन्टेड है। उसे जहाज में किसी साए के होने का आभास होता है। वह जब इस भुतहा कहे जानेवाले जहाज की जांच-पड़ताल करता है, तो कई राज खुलते जाते हैं, जो बहुत ही भयावह सच को उजागर करते हैं। इसी पड़ताल में पृथ्वी की निजी जिंदगी का दुखद पहलू भी सामने आता है। निर्देशक भानु प्रताप सिंह की यह फिल्म रियल इंसिडेंट पर आधारित है, जब सालों पहले एक बहुत बड़ा-सा पानी का जहाज बिना किसी इंसान के अचानक किनारे पर आ खड़ा हुआ था। इसमें कोई शक नहीं कि फिल्म का पहला डरावना सीन मुंह से चीख निकलने पर मजबूर कर देता है, मगर जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती जाती है, डर का माहौल अपनी पकड़ नहीं बना पाता। विकी कौशल की निजी जिंदगी का पहलू आमिर खान की 'तलाश' की याद दिलाता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि फिल्म के कुछ दृश्य अच्छे-खासे डरावने हैं, मगर उनमें नवीनता का अभाव है। छत और दीवारों पर छिपकली की तरह रेंगती चुड़ैलें हम पहले भी देख चुके हैं। भूत का मेकअप डराने के बजाय फनी लगता है। बैकग्राउंड म्यूजिक ने डर को बढ़ाने में अच्छा साथ दिया है, मगर कमजोर स्क्रीनप्ले के कारण दोहराव का अहसास होता है। हॉरर फिल्मों को सशक्त बनाने के लिए जिस तरह के कम्प्यूटर ग्राफिक्स का इस्तेमाल किया गया है, वह नाकाफी है। सेकंड हाफ में कहानी बिखर कर उलझ जाती है और क्लाईमैक्स में 'हीम क्लीम चामुंडाय' मंत्र के कारण यह टिपिकल हॉरर फिल्म बन कर रह जाती है। भूत के होने का कारण भी विश्वसनीय नहीं बन पाया है। फिल्म के आखिर में निर्देशक पार्ट टू बनाने का इशारा भी दे जाता है। अपराध बोध और अवसाद से ग्रसित पृथ्वी के चरित्र को विकी कौशल ने बखूबी निभाया है। डर और हैरत के दृश्यों में भी वे अच्छे रहे हैं। मेहमान कलाकर के रूप में भूमि याद रह जाती हैं, मगर आशुतोष राणा जैसे सशक्त अभिनेता की भूमिका को सही तरीके से विकसित नहीं किया गया है। सहयोगी कास्ट ठीक-ठाक है। क्यों देखें-भुतहा फिल्मों के शौकीन यह फिल्म देख सकते हैं।


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