Post Page Advertisement [Top]

की ज्यादातर फिल्में लीक से हटकर रही हैं। पिछली दो फिल्मों 'अंधाधुन' और 'बाला' में अलग किरदार निभाने के बाद अब आयुष्मान अपनी नई फिल्म में एक समलैंगिक के किरदार में हैं। इस मुलाकात में आयुष्मान हमसे एलजीबीटी कम्युनिटी और अपने निजी जीवन पर ढेर सारी बातचीत करते हैं: जब फिल्म का प्रपोजल आया तो जेहन में उस वक्त किस तरह के ख्याल आए?सच कहूं, तो इस कॉन्सेप्ट को मैं खुद ही एक्स्प्लोर कर रहा था कि पर फिल्म तो बननी ही चाहिए। भले ही हमारे देश के कोर्ट ने इसकी इजाजत दे दी हो, लेकिन समाज में स्वीकार्यता अब भी नहीं मिली है। इस मुद्दे‌ पर एक कमर्शल फिल्म बहुत जरूरी है। '' फिल्म के जरिये हमारी कोशिश है कि यह उन लोगों तक पहुंचे, जो इस तरह के प्यार के खिलाफ हैं। हम दर्शकों के लिए इसे किस तरह की फिल्म समझें?दर्शकों के लिए तो पूरी तरह से एंटरटेनिंग फिल्म होगी। यह ऐसी कॉमिडी फिल्म है, जिसे आप अपने परिवार के साथ बैठकर आराम से देख सकते हैं। फिल्म में कुछ भी ऐसा सीन नहीं है, जिसे देखकर किसी को आपत्ति हो। आज सेक्शन 377 के ध्वस्त होने के बावजूद परिवार अपने बच्चों की सेक्शुऐलिटी को लेकर खुलकर बात नहीं करते हैं। उनपर जबरदस्ती शादी का जोर डालते हैं?हां, ऐसा होता है। यह हमारे देश की ही बात नहीं है बल्कि विदेशों में भी ऐसे केसेज होते हैं। मुझे लगता है कि यह सब करने से इसका हल नहीं निकल जाएगा। आपको यह सब करने की जरूरत नहीं है। बल्कि पैरंट्स को बच्चों पर जोर डालने के बजाय सोसायटी पर दबाव डालना चाहिए। फिल्म में एक गाना है, जिसके बोल इस तरह हैं कि हमसे तो लड़ लोगे लेकिन दुनिया से कैसे लड़ोगे? मैं कहता हूं कि मां-बाप ही हमारी दुनिया होती है, अगर वे मान जाएं और आधार बनकर खड़े हो जाएं तो दुनिया कुछ करेगी ही नहीं, दिक्कत होगी ही नहीं। लेकिन हमारे दकियानूसी ख्यालात हैं, जिसे बदलने में वक्त लगेगा। उन्हें तो लगता है कि यह बहुत ही अननैचुरल है, बीमारी है या वेस्ट से हम प्रभावित हैं। पहले तो लोग इसको समझने की कोशिश करें। हो सकता है कि हमारी फिल्म उन्हें कुछ समझा सके। एलजीबीटी मुद्दों पर फिल्म बनाने के लिए मशहूर ओनिर ने कहा था कि आज भी उन्हें कई बड़े मेन स्ट्रीम ऐक्टर्स मना कर देते हैं। जबकि आपने इस मिथ को तोड़ा है?मैं मानता हूं कि हर एक की अपनी सोच होती है। कई बार ऐसा होता है कि ऐक्टर्स उस कम्युनिटी के साथ होते हैं लेकिन उन्हें गे का किरदार निभाने से परहेज है। यह अपनी एक सोच और फैसला है। इसमें कुछ सही गलत जैसा नहीं है। फिर मुझे लगता है कि अब इस तरह के मुद्दों को रखने का हाई टाइम आ गया है। दस साल पहले बात कुछ और थी अब हम खुद समय के साथ विकसित हो रहे हैं। मैं खुद की बात करूं, तो मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि मैं एक समय पर इसके बारे में जानता नहीं था। 2004-5 में जब मैं कॉलेज में था, तो मुझे गे क्लब ने इन्वाइट किया था। मैं डर गया था और मैं नहीं गया। अब मैंने समय के साथ समझ विकसित की है और बॉलिवुड में एलजीबीटी कम्युनिटी का फ्लैग बैरियर बन चुका हूं। मैंने एक बहुत ही खूबसूरत जर्नी तय की है। सरकार भी अपने-अपने मेनिफेस्टो में इनके उत्थान की बात करती है लेकिन परिणाम कुछ नजर नहीं आता है। इस पर क्या कहेंगे?पर आप यह देखें न, ऐक्ट 377 को डिक्रिमिनलाइज करना ही बहुत बड़ी बात थी। यह बहुत अच्छा संकेत था, हमारे देश ने प्रोग्रेस के लिए बेबी स्टेप ले लिया था। धीरे-धीरे और भी बदलाव आएंगे, टाइम लगेगा। शादी की इजाजत नहीं है और बच्चे अडॉप्ट नहीं कर सकते हैं। बहुत सी समस्याएं हैं। उन्हें सिविल राइट्स का इश्यूज भी है। इन सबका अधिकार मिलना चाहिए। सिल्वर स्क्रीन पर एक लड़के को किस करना कितना मुश्किल या आसान रहा?मुश्किल तो नहीं, एक ऐक्टर को हर तरह की परिस्थिति के लिए तैयार होना चाहिए। अगर हम फिल्म में दो लड़कों के बीच की लव स्टोरी को दिखा रहे हैं, तो जाहिर है कि उनका किस करना स्वाभाविक है। हमने उसे आम लव स्टोरी की ही तरह रखा था। सच कहूं, जिस तरह से कहानी के बीच किसिंग सीन आता है, आपको लगता है कि यार, इसमें गलत क्या है? आपके इस किरदार को लेकर परिवार और बच्चों का क्या रिएक्शन था?मेरा बेटा उतना समझदार नहीं है लेकिन उसे यह अच्छे से पता है कि सबकी अपनी चॉइस होती है। मैंने जब उसका रिऐक्शन जानने के लिए पूछा कि अगर स्कूल में किसी लड़के का बॉयफ्रेंड हो तो? उसने बड़े ही सहजता से कहा कि इसमें मेरा क्या जाता है। यह तो उसकी चॉइस है। कोई ऐसा मुद्दा जिसपर फिल्म बननी चाहिए?वैसे तो बहुत से मुद्दे हैं, अगर बता दिया, तो कोई और फिल्म बना लेगा। पिछली बार जब 'बाला' अनाउंस की थी, तो लोगों ने 'उजड़ा चमन' बना दी थी। इतना निश्चिंत रहें कि जो भी फिल्म आएगी, किसी न किसी मुद्दे पर होगी ही। आप ऐक्टर के तौर पर खुद को कितना रिस्पॉन्सिबल मानते हैं। आपकी सोशल मेसेज वाली फिल्मों ने कहीं प्रेशर तो नहीं बढ़ा दिया है?मैं मानता हूं कि सफलता से आप पर प्रेशर नहीं बल्कि साहस आता है। आपके अंदर रिस्क लेने की ज्यादा हिम्मत होती है। आप अलग और अनोखे सब्जेक्ट्स करें। हां, यहां रिस्पॉन्सिबिलिटी भी आती है कि आप बेहतर सब्जेक्ट्स का चुनाव करें। मैं उम्मीद करता हूं कि मुझे अच्छे सब्जेक्ट्स ऐसे ही मिलते रहें। अच्छे मिलेंगे तो साल में 3 फिल्में करूंगा और नहीं मिले तो साल में एक फिल्म आएगी। एनआरसी को लेकर देश में जो माहौल दिख रहा है। उस पर क्या कहना चाहेंगे?मैं जो भी कहूंगा अपनी फिल्मों के जरिए ही कहूंगा। 'आर्टिकल 15' के समय पर भी मैंने कोई ऐक्टिविज्म नहीं की थी। मैं किसी चौराहे पर नहीं खड़ा हुआ था कि मैं अंडरप्रीविलेज्ड के साथ हूं। मैं मानता हूं कि फिल्म एक ऐसा जरिया है जिससे आप ऐक्टिविज्म से ऊपर जा सकते हैं। उस बंद हॉल में आप कई बार दिखने वाली चीजों से प्रभावित हो जाते हो। मैं जो भी कहूंगा फिल्मों के जरिए ही कहूंगा, चाहे वह एनआरसी हो, करंट मुद्दा हो या फिर क्लाइमेट चेंज पर हो लेकिन वह सभी फिल्मों के जरिए होगा।


from Entertainment News in Hindi, Latest Bollywood Movies News, मनोरंजन न्यूज़, बॉलीवुड मूवी न्यूज़ | Navbharat Times https://ift.tt/2OEcu0t

No comments:

Post a Comment

Bottom Ad [Post Page]